शिव स्तुति |
शिव आरती |
कैलाश मठ, जहां भगवान शिव की पूजा उनके शिवलिंगम में की जाती है, वाराणसी के भेलूपुर गांव में स्थित है। यह मंदिर वाराणसी के साथ-साथ भारत के अन्य हिस्सों में भी बेहद प्रसिद्ध है। यह मंदिर शहर के केंद्र में स्थित है और विश्वेश्वर या विश्वनाथ के नाम से जाना जाता है, जो शिव के ज्योतिर्लिंग से जुड़ा हुआ है। इस पुराने मंदिर को इतिहास में कई बार नष्ट किया गया और फिर से निर्माण किया गया है।
श्रावण मास और महाशिवरात्रि के अवसर पर यहां के पवित्र मंदिर में धूमधाम से त्योहार मनाए जाते हैं। भारत और विदेशों से लोग यहां आते हैं और भगवान शिव की पूजा, पवित्र कुएं से पानी लेना और दर्शन करने का आनंद लेते हैं। देव दिवाली और प्रोडोश व्रत भी यहां मनाए जाते हैं। मेले और उपवास के साथ शिवरात्रि भी यहां विशेष रूप से मनायी जाती है। कैलाश मठ आध्यात्मिक और पर्यटन स्थल के रूप में चर्चित है, जहां श्रद्धालुओं को भगवान शिव की पूजा, धार्मिक आयोजनों में भाग लेने का मौका मिलता है। इसकी सुंदरता, धार्मिक महत्व और पवित्रता ने इसे देशभर में प्रसिद्ध किया है। कैलाश मठ यात्रा भारतीय संस्कृति, आध्यात्मिकता और शिव भक्ति के लिए महत्वपूर्ण स्थल है।
आधुनिक विद्वान श्री जितेन्द्र जी तिवारी-व्याकरणाचार्य द्वारा यहाँ साधन हीन वित्तहीन विद्यार्थियों को आरम्भ से लेकर उच्च शिक्षा, उनके रहने एवं भोजन की व्यवस्था देकर सर्वांगीण विकास सुनिश्चित किया जाता है।
“शरीरमाद्यं खलु धर्म साधनम्", अर्थात धर्म की साधना करनी है, तो सबसे पहला साधन है अपना शरीर स्वस्थ्य रखें। योग करे निरोग रहें। कैलाश मठ में नित्य योग कराया जाता है।
- योगाचार्य स्वामी राघवानन्द गिरी जी महाराज
जिसे हिन्दू धर्म के वैकल्पिक नाम से जाना जाता है। सनातन का अर्थ है शाश्वत या हमेशा बना रहने वाला जो अनादि काल से चला आ रहा और जिसका कभी अन्त नहीं होगा वही सनातन है। सनातन धर्म के मूल तत्व सत्य, अहिंसा, दया, क्षमा, दान, यम, नियम आदि का महत्व है। असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योर्मा अमृतं गमय अर्थात् हे ईश्वर मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो अन्धकार से प्रकाश की ओर ले चलो। मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो। मृत्यु आये इससे पहले ही सनातन धर्म के सत्य मार्ग पर आ जाने में ही भलाई है। जो लोग उस परम तत्व परखाद्य परमेश्वर को नहीं मानते हैं वे असत्य में गिरते हैं। मृत्यु काल में बिना लक्ष्य के यात्री की भाँति अनन्त अंधकार में पड़ते हैं।
भारतीय संस्कृति में गौमाता का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है, गौमाता की पूजा वैदिक काल से चली आ रही है, जिसे द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण ने पुनः प्रतिष्ठापित करते हुए गौमाता की सेवा स्वयं की एवं सम्पूर्ण मानव समाज को गौसेवा करने का मार्ग दर्शन दिया। जिसे द्वापर युग से लेकर कलयुग तक जारी है, लेकिन आधुनिकता का दिखावा करने के कारण नव समाज उससे दूर होता जा रहा है, उपरोक्त गौसेवा, एवं गौरक्षा का कार्य प्रतिष्ठित सन्त समाज कैलाश मठ काशी के महामण्डलेशवर 1008 श्री रामचन्द्र गिरी जी के सनिध्य में सम्पूर्ण निष्ठा के साथ हो रहा है।
आप भी अपने जन्म दिन एवं अपने बच्चों के जन्म दिन व अपनी शादी की सालगीरह पर या माता-पिता की पुण्यतिथि पर सेवा देकर पुण्य के भागी बन सकते है।
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